मुकुन्द समाधि
खेतारामजी अपने घोड़े को मुकुन्द नाम से बुलाते थे खेतारामजी महाराज केब्रह्मलीन होने पर मुकुन्द को स्वतः ही इसकी जानकारी हो गयी थी। तो मुकुन्द ने अन्न, पानी छोड़ दिया और खेतारामजी महाराज के ब्रह्मलीन होने के 11 दिन ही मुकुन्द ने अपने प्राण त्याग दिये थे मुकुन्द घोड़े को समाधि दी गयी तथा उसके ऊपर समाधि स्थल बनया गया जिस पर आज भी मुकुन्द घोड़े की मूर्ति स्थापित की गयी है।