ब्रह्मर्षि श्री तुलछाराम जी महाराज

सदगुरु देव श्री तुलछाराम जी महाराज का जीवन परिचय

सदगुरु देव श्री तुलछाराम जी महाराज

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: ।

गुरु: साक्षात्पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:॥

परम पूज्य ब्रह्मर्षि श्री तुलछाराम जी महाराज का जन्म ब्रह्मधाम के समीप इन्द्राणा गांव के राजपुरोहित श्री प्रतापजी, माता श्रीमती लहरों की पवित्र कोख से अनन्त चतुर्दशी (भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी) विक्रम संवत् 2009 गुरूवार को ब्रह्ममुहूर्त में आपका प्राकट्य हुआ। आप माता-पिता की पांचवी संतान हैं। बाल्यावस्था से ही गृह कार्यं में दक्ष थे। स्फूर्ति से हर कार्य को करना, सबकी सेवा करना, आलस्य जैसी प्रवृति कभी नहीं रही। आज भी वो ही स्फूर्ति देखने को मिलती है। दो-तीन वर्ष पाठशाला में अक्षर ज्ञान प्राप्त करके कृषि और गौ सेवा के कार्यं में लग गये। घर-परिवार, बंधु-बान्धवों के प्रति आपका सदव्यवहार होने से आप सबको प्रिय लगते थे। आप सदैव प्रसन्न मुद्रा में, हंसते मुस्कराते रहते हैं।

      आपके माता-पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे वे साधु, संतों, महापुरूषों के प्रति सेवा का भाव रखते थे। क्षेत्रिय संत महापुरूषों का आगमन आपके घर रहता था। एक समय आपके घर परम पूजनीय ब्रह्मर्षि श्री खेतारामजी महाराज पधारे। उसी समय आप पर भी उनकी कृपा दृष्टि पड़ी। कई बार आप माता-पिता को लेकर ब्रह्मधाम पधारते। गुरू महाराज जी का सानिध्य प्राप्त होता।

माता-पिता को तीर्थं स्नान करवाना

एक बार गुरू महाराज जी के संकेत पर अपने माता-पिता को तीर्थं स्नान करवाया। भक्त श्रवण कुमार की तरह आपने अपने माता-पिता की सेवा में स्वयं को अर्पण कर दिया। माता-पिता से आर्शीर्वाद लेकर आप अपने गांव में ही एक ऊँचे धोरे पर कुटिया बनाकर भजन करने लगे। आपने अपना प्रथम चातुर्मास गांव के धोरे पर ही किया। गुरूमहाराज जी ने एक बार कहा कि माला फेरनी हो तो आसोतरा गांव के पास पीपलिया स्थान पर जाकर भजन करो। प.पू. खेतारामजी महाराज ने गृह त्याग कर प्रथम तप पीपलिया पर ही किया था। सिद्ध भूमि पीपलिया पर गुरू कृपा वाला ही भजन कर सकता है वहां ठहर सकता है।

दो वर्ष आपने पीपलिया आसन पर चातुर्मास किया। शुभ अवसर आने पर गुरू महाराजजी ने आपको पीपलिया से बुलाकर जग चावा किया। मात्र 6 दिनों का सान्निध्य प्रदान किया। जगद् पिता भगवान ब्रह्माजी की प्राण-प्रतिष्ठा वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को थी और अमावस्या के दिन आपको ब्रह्मधाम पधारने का कहा। वैशाख शुक्ल चतुर्थी का गुरू महाराज ने आपको एकान्त में लेकर कई वचन फरमाये। एकान्त में ही अपनी कण्ठमाला और जोली आपको प्रदान कर सिर पर हाथ रखकर आशीष दिया। दूसरे ही दिन पंचमी को भगवान ब्रह्माजी की धूम-धाम से प्राण प्रतिष्ठा हुई।

षष्ठी को भाविको से भरे हुए परिसर में परम पूज्य श्री तुलछाराम जी महाराज को समीप बैठाकर 12 बजकर 36 मिनट पर आप ब्रह्मलीन हो गये।। गुरूमहाराज जी के ब्रह्मलोक गमन के पश्चात् उनकी षोढ़सी भण्डारे के अवसर पर राजपुरोहित समाज ने ब्रह्मर्षि श्री तुलछारामजी महाराज को उत्तराधिकारी के रूप में गुरू गादी पर विराजमान कर आपको भव्य स्वागत किया। ब्रह्मोत्तर राजपुरोहित समाज की तरफ से श्री आत्मानन्द जी सरस्वती ने आपको चादर भेंट की श्री ब्रह्मा सावित्री सिद्ध पीठ के पीठाधिपति बनाये गये।

गुरू महाराज जी की प्रेरणा से ‘श्री ब्रह्माजी का मन्दिर एवं राजपुरोहित समाज विकास न्यास’ का गठन हुआ। इस न्यास में 51 सदस्य ब्रह्मोत्तर के सभी क्षेत्रों से प्रतिनिधित्व करते हैं।
सबको साथ में लेकर चलने की कुलगुरू महाराज की परम्परा का निर्वहन करते हुए परम पूज्य श्री तुलछाराम जी महाराज की कृपा से समाज में प्रेम-भाव बढ़ा। जो भी शरण में आता है उसका कल्याण करते है।


आपने सर्वप्रथम परम पूजनीय श्रीखेतारामजी महाराज का समाधि स्थल वैकुण्ठधाम का निर्माण करवाया। उसके पश्चात् एक हजार गौ माताओं की सेवा के लिए आदर्श गौशाला की स्थापना की। भोजनशाला के लिए वृहद भवन का निर्माण करवाया। सुन्दर धर्मशाला का निर्माण करवाया।
आपने महिलावास और मवड़ी के मध्य ‘जुंझाणी नाडी में गुरू प्याऊ का निर्माण करवाया। धूणे की स्थापना की। विशाल पोल का निर्माण करवाया। यज्ञशाला का निर्माण करवाया। यहां 12 बार 5 दिवसीय गायत्री महायज्ञ करवाया। गुरूकुल हेतु भव्य भवन का निर्माण करवाया। आपने ब्रह्मधाम आसोतरा की गुरू गादि पर विराजने से पूर्व 12 वर्ष का मौन व्रत किया।

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