श्री ब्रह्मसरोवर
ब्रह्मसरोवर की कल्पना श्री खेतेश्वर दाता के स्वयं द्वारा की गयी थी जिस प्रकार ब्रह्माजी ने 12वें कल्प की रचना पुष्कर में की, जहां पर ब्रह्माजी का विश्व का विशाल प्रथम मंदिर स्थित है और पुष्कर की महत्तता जहां ब्रह्मधाम होता है वहां पर एक सरोवर का होना बहुत ही अपेक्षित है जैसा पुष्कर में है वैसा खेतेश्वर दाता ने सपना देखा कि जब यहां ब्रह्मधाम प्रतिष्ठित होगा तो यहां एक सरोवर का भी अस्तित्व यहां हो तो सरोवर की स्थापना का जो दीर्घकालीन विजन जो खेतेश्वर दाता ने देखा था वो पर्यावरण की रक्षा के लिए था और धर्म व अध्यात्म से जुड़ता हुआ मसला भी था सरोवर के किनारे यज्ञ हवन और जितने भी कर्मकाण्ड और धार्मिक विधि-विधान होते है वो सफल होते है तो उन्होंने यथोचित स्थान देखकर इसकी खुदाई का निर्णय लिया और जब इसकी खुदाई शुरू हुई तो खेतेश्वर दाता का आसन भी प्रतिदिन उस सरोवर की पाल की किनारे ही होता था जहां खेजड़ी के वृक्ष भी थे तब गुरूमहाराज जी जब बैठे होते थे तो देखते की 20-25 भक्त भाविक, दर्शांथी यहां इक्कठा हो गये है तो स्वयं खेतेश्वर दाता कुदाली, तगारी और पावड़ा लेकर खुदाई के लिए और कुछ पास बैठे जो भक्त भाविक होते थे वो अधीर होकर कहते, गुरूजी आप बिराजिये, हम खुदाई करेंगे, तो वो एक इच्छारा हुआ करता था इस तरह श्रमदान के निमित जो भी भक्त भाविक आते थे वो श्रमदान जरूर करते थे।
आस-पास की स्कुल से भी विद्यार्थींओ को गुरूजन लाईन-पंक्तिबंध यहां लाते थे वो तालाब की खुदाई बच्चों के माध्यम से भी यथायोग्य होती थी। जिसमें एक-एक तगारी आगे-आगे अंतिम छोर तक मिट्टी डाल दी जाती थी। इस तरह 7 वर्ष कार्यं चलकर सन् 1977 में ब्रह्मसरोवर वर्तमान स्वरूप में आया। ब्रह्मसरोवर के पानी की आवक के लिए सड़क किनारे डेढ़ किलोमीटर तक नहर निकाली गयी है जो जालोर रोड़ पर दोनों तरह पहाड़ियां है इन पहाड़ियों का पानी भी तालाब तक पहुंचे इसलिये नहर का निर्माण किया हुआ है। इसमें शुद्धता, सात्विकता, पवित्रता का हर समय ध्यान रखा जाता है।
गुरूमहाराज के आदेश से प्रेमसभा भी सरोवर के किनारे ही होती है। जितने भी चातुर्मास व साद्ना के कार्यक्रम हुये है वो सरोवर पर ही हुये है इसका ऐतिहासिक व पौराणिक महत्त्व होने के कारण ऐसे निर्णय लिये गये है।